यादों के झरोखे से " सर्वगुण संपन्न "
दोस्तों! यादों के झरोखे में से एक और बात जो अब यादों की श्रेणी से जुड़ चुकी है, उसे लेकर आई हूॅं। सबसे पहले आप सभी से एक प्रश्न! क्या कोई भी इंसान सर्वगुण संपन्न हो सकता है ? नहीं ना । फिर हम दूसरों से यह उम्मीद क्यों करते हैं कि उसे सबकुछ आता होगा । जब हमें सब कुछ नहीं आता है तो दूसरे से क्यों हम चाहते हैं कि वह सर्वगुण संपन्न हो ?
दोनों ! प्रत्येक इंसान में कोई ना कोई खूबी अवश्य होती है । हो सकता है मुझे जो करना ना आता हो उसे आता हो और मुझे जो आता हो वह उसे करने में असमर्थ हो । यह सब जानते हुए भी कि इंसान सर्वगुण संपन्न नहीं हो सकता हम उसे उस बात के लिए भला - बुरा कहने लगते हैं । यह कोशिश नहीं करते कि उस काम को हम उसे सिखा भी तो सकते है । यदि हम उसे सिखाएं , अच्छे से प्यार से समझाएं तो वह व्यक्ति सीख जाएगा लेकिन हमारा अंहकारी मन इस बात को कहां समझ पाता है ? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा अंहकारी मन दूसरों की कमियां ढूंढने में ही जो लगा रहता है । उस कमी को दूर करने की तरफ उसका ध्यान बिल्कुल भी नहीं जाता है । इसी अहंकारी मन के कारण हम अपने बहुत से ऐसे रिश्ते को खो देते हैं जो हमारी जिंदगी में मायने रखते हैं ।
दोनों ! मान लेते हैं कि जो चीज मुझे करनी आती है वह मैंने कर दिया लेकिन साथ में यह अहंकार अपने मन के भीतर रखा कि मुझे ही यह काम करना आता है और तो कोई इस काम को कर नहीं पाया और यही पर हम इंसानों से भूल हो जाती है । अपने अहंकार में हम यह भूल कर बैठते हैं जबकि हम खुद भी सर्वगुण संपन्न नहीं होते है । अगर दूसरे को यह चीजें करनी नहीं आती है तो हमें भी बहुत सारी ऐसी चीज है जो हम कर नहीं पाते हैं । मेरी चाची भी इसी प्रवृत्ति और सोच के साथ आज तक जीती चली आ रही है। बहुत लोगों ने उन्हें अपने - अपने ढंग से समझाने की कोशिश की परंतु वह अभी भी नहीं मानी है। बदलाव आया ही नही उनकी सोच में अब तक।
दोस्तों ! जब भी उन्हें देखती हूॅं यह सवाल दिमाग में अवश्य आता है कि वो स्वयं जब सर्वगुण संपन्न नहीं है तो फिर अपनी बहुओं को क्यों सर्वगुणसंपन्न ना होने पर ताना मारती है साथ ही वह ये क्यों कहती रहती है कि तुम्हारे माॅं - बाप ने कुछ नहीं सिखाया। यदि मैं स्वयं की बात करूं तो मेरा यह मानना है कि हम सबको दूसरे में सर्वगुण संपन्न के गुण ढूंढने से पहले हमें खुद में सर्वगुण संपन्न होने का प्रयास जारी रखना होगा और साथ में मैं तो यह भी कहूंगी कि जीवन के अंतिम क्षणों तक हम सभी को यह प्रयास करते रहना पड़ेगा क्योंकि हम कभी भी सर्वगुण संपन्न कहला ही नहीं सकते ।
दोस्तों ! जब इंसान मरते दम तक सर्वगुण संपन्न हो ही नहीं सकता तो दूसरे सर्वगुण संपन्न नहीं है यह सोच कर उनका उपहास क्यों करता है ? वह कड़वी बातें कर दूसरों का दिल क्यों दुखाता है ? अपने अहंकार के मद में दूसरे को नीचा दिखाना कहां तक न्याय संगत है ? इस बात को मानव मन क्यों नहीं समझ पाता है ? कहते हैं कि जब खुद पर बीतती है तभी उसका एहसास होता है और ईश्वर इसी जन्म में यह एहसास प्रत्येक व्यक्ति को कराते भी है । भले ही वह माने या ना माने । हमारे सामने वह इस बात को कबूल करें या ना करें लेकिन उसका स्वयं से साक्षात्कार जब होता है तो वह इस बात को बखूबी समझ पाता है लेकिन दूसरों के सामने वह इसे व्यक्त नहीं करता है यह सोच कर कि लोग उसे झुका हुआ ना समझ ले और यही उसकी सबसे बड़ी भूल होती है ।
दोस्तों ! अभी के लिए इतना ही । चलती हूॅं लेकिन जाने से पहले सिर्फ इतना ही कहूंगी 👇
" सर्वगुण संपन्न खुद को मानकर
इतराना छोड़ दो
तुमसे भी कोई बीस बैठा है
यें बातें अपने ज़हन में डाल लों ।"
हां जाने से पहले यह भी तो कहूंगी 👇
🤗🤗 " आप सभी अपना ध्यान रखना खुश रहना और सबसे महत्वपूर्ण बात हमेशा हंसते - मुस्कुराते रहना " 🤗🤗
गुॅंजन कमल 💓💞💗
Rajeev kumar jha
11-Dec-2022 12:28 PM
बेहतरीन
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Mahendra Bhatt
11-Dec-2022 09:38 AM
शानदार
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Pranali shrivastava
10-Dec-2022 07:52 PM
बहुत खूब
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